Friday, 23 September 2011

ज़िन्दगी से मुलाकात




कल मेरे अनमने मन की मुलाकात ज़िन्दगी से हुई
सुसज्जित पुष्प आवरण में
खुशबू से आच्छादित
अप्रतिम सौन्दर्य लिए ....
सौन्दर्य ने मन की दशा ही परिवर्तित कर दी
लगा - बसंत तो कहीं गया ही नहीं है !
मुस्कुराती ज़िन्दगी की चपल आँखों ने कहा ,
कुछ कहना है या पूछना है ....

मन ने ज़िन्दगी की आँखों में गोते लगाए
जितने ख्वाब चुन सकता था - चुने
बेशुमार रंगों से रंग लिए
और टिमटिमाती ज़िन्दगी को छू छूकर देखा
बुदबुदाया -' ज़िन्दगी तो माशा अल्लाह कमाल की है
इसे कौन नहीं जीना चाहेगा !'
कई सवाल कुलबुलाये ....
पर ये ज़िन्दगी तो कई खेल खेलती है
...... दर्द का सिलसिला , भय का सिलसिला
हार का सिलसिला .... चलता है तो रुकता ही नहीं
शिकायतों का पुलिंदा लिए हम रोते जाते हैं
और ज़िन्दगी कानों में रुई डाले अनजान बनी रहती है ....

मन आगे बढ़ा... ज़िन्दगी के काँधे पर हाथ रखा
.... ज़िन्दगी फिर मुस्कुराई ,
आँखों को उचकाकर कहा - 'कहो भी ... '
मन ने संयत भाव लिए कहा -
" ज़िन्दगी तुम्हारे सौन्दर्य में तो
कहीं कोई कमी नहीं ....
जीने के हर खुले मार्ग हैं तुमसे जुड़े
व्यवधान का पुट कहीं दिखता ही नहीं
फिर जब हम तुम्हें जीते हैं
तो मार्ग अवरुद्ध कैसे हो जाते हैं !"

ज़िन्दगी ने मन का सर सहलाया
संजीवनी सी लहरें लहरायीं
मन देवदार की तरह हो ज़िन्दगी को सुनने लगा -
" मैं ज़िन्दगी हूँ
जन्म से मृत्यु के मध्य
मैं सिर्फ जीवन देती हूँ
तहस नहस करना मेरा काम नहीं
छल के बीज भी मैं नहीं बोती
विनाश से मेरा कोई नाता नहीं
मैं तो बस देती आई हूँ ...
अर्थ का अनर्थ
यह तो इंसानी दाव पेंच हैं ...
'इसी जीवन में सब होता है '
ऐसा कहकर इन्सान अपनी चालें चलता है
अपने स्वार्थ साधता है
सबकुछ तोड़ मरोड़कर
बढ़ाकर घटाकर
मायूसी से कहता है
'ज़िन्दगी के रंग ही अजीब हैं .... '
सच तो ये है
कि मेरे पास कुछ भी बेमानी नहीं
हर रंग की अपनी खासियत है
अगर इंसानी मिलावट ना हो ...
मैं तो सिर्फ राहें निर्मित करती हूँ
सेंध लगाना इंसानी फितरत है
किसी और को कटघरे में डालना भी
उसकी सधी चाल है .. .."

अनमना मन अनमना नहीं रहा
उसने बड़े प्यार से ज़िन्दगी के हाथ चूमे
लम्बी सी सांस ली
और मेरे पास आ गया
कहीं कोई सवाल शेष नहीं रहा ....

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