Friday, 23 September 2011

मैं नन्हा गाँधी



मैं नन्हा गाँधी
इस बार कोई सत्याग्रह नहीं करूँगा
अपनी पदयात्रा भी अकेले करूँगा
...... परायों से युद्ध जटिल होकर भी
आसान था
पर अपने घर में !!!
बालसुलभ हठ हर उम्र में एक सुख देता है
पर जब अपने षड़यंत्र करते हैं
एक दूजे को नीचा दिखाने का
हर संभव प्रयास करते हैं
तो भूख यूँ ही मर जाती है ...
फिर कैसा अनशन ?
और किससे क्या पाना !
.......
जो मद के गुमां में होते हैं
उनके लिए तो प्रेम ही वर्जित है ...
न घर न देश ---- सिर्फ मैं '
तो इस 'मैं' का हश्र मैं देखना चाहता हूँ
अपने नन्हें क़दमों से वहाँ तक जाना चाहता हूँ
जहाँ 'मैं' स्तब्द्ध' होता है
दिशाएं मौन होती हैं
अपना साया भी पीछे रह जाता है
..... वहाँ उस सन्नाटे में अपनी हथेली बढ़ाना चाहता हूँ
इस लम्बी यात्रा को 'वसुधैव कुटुम्बकम' का विजयी मंत्र देना चाहता हूँ
....
मैं नन्हा गाँधी
पीछे आनेवाली आहटों पर ध्यान लगाए
आज से अपनी यात्रा शुरू करता हूँ
तुम्हारी नज़रें जहाँ जहाँ जाती हैं
वहाँ वहाँ से तुम्हारा आह्वान करता हूँ
.... याद रखना , मैं एक देश हूँ तुम्हारा
कोई पार्टी नहीं !!!

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