Friday, 23 September 2011

खुदा साथ चलने लगा




अपने चारों तरफ
जाने अनजाने
अनगिनत पगडंडियाँ बना
मैं प्रश्नों की भूलभुलैया से गुजरती रही ...
खून रिसने का खौफ नहीं हुआ
ना ही थकी चक्कर लगाते लगाते
चेहरे की रौनक ख़त्म हो गई
पर हौसलों की आग सुलगती रही ...
... धैर्य की एक हद होती है - सुना था
तो हदों से आगे
मैंने पगडंडियों से दोस्ती कर ली
क्योंकि हार मानना मेरी आदत नहीं !
दोस्ती में बड़ी कशिश होती है
पगडंडिया मंजिल तक पहुँचाने लगीं
....
देखते देखते कई कदम अनुसरण करने लगे
और पगडंडियाँ ठोस रास्तों में तब्दील होती गईं ...
..........
कहते हैं - चाह लो तो खुदा मिलता है
यहाँ तो खुदा साथ चलने लगा

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