
सत्य और कथा ...दो अलग पाट हैं जीवन के अनुमान का जल न सत्य को उद्भाषित कर पाता हैन कथा के मूल को ... !लकड़ी की नाव से इस किनारे से उस किनारे तक जाने के मध्य जीवन भी है और मृत्यु भी... न जीवन का वक़्त है न मृत्यु का तुम्हारी जिजीविषा तुम्हारी चाह नदी के दोनों पाट पर महल तो खड़े करते हैं पर महलों...