देवास | जिले के कई ग्रामीण इलाकों में हर साल मलेरिया का प्रकोप फैलता है और सैकड़ों लोग इसकी चपेट में आते हैं, लेकिन आश्चर्य की बात कि इसके बावजूद महात्मा गाँधी जिला अस्पताल में अभी तक मलेरिया विभाग ही नहीं है। यही नहीं, मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारी को नियंत्रित करने के लिए यहाँ सहायक मलेरिया अधिकारी और मलेरिया निरीक्षक सहित कुल 7 पद स्वीकृत हैं, लेकिन ये सभी कई सालों से खाली पड़े हैं। जिला मलेरिया कार्यालय उज्जैन में है और वहीं से सभी गतिविधियाँ संचालित होती हैं। देवास में सिर्फ सब-यूनिट है और निरीक्षण आदि की कार्रवाई संचालित की जाती है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा बीमारियों को काबू में करने के दावे अब तक तो खोखले ही साबित होते रहे हैं। इसका अंदाजा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि यहाँ की सब यूनिट के लिए स्वीकृत सभी पद दो सालों से खाली पड़े हैं। प्रभारी अधिकारी प्रकाश गुप्ता ने बताया कि यूनिट के लिए सहायक मलेरिया अधिकारी समेत मलेरिया निरीक्षक के 6 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 2009 से सभी रिक्त हैं। वर्तमान में यूनिट को संचालित करने के लिए सुपरवाइजर को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
हालाँकि अन्य क्षेत्रों में तेजी से फैलते मलेरिया संक्रमण को रोकने के जिले में 19 नवंबर से निरीक्षण कार्य प्रारंभ हो गया है, लेकिन मलेरिया यूनिट में पर्याप्त स्टाफ की कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में निरीक्षण का कार्य आशा कार्यकर्ताओं, एमपीडब्ल्यू, एएनएम और मल्टी परपज वर्कर को करना पड़ रहा है। देवास जिला काफी बड़ा है। इसका ग्रामीण हिस्सा दूर-दूर तक फैला हुआ है। ऐसे में स्टाफ की कमी के चलते जिलेभर का निरीक्षण कार्य प्रभावित हो सकता है।
प्रभारी श्री गुप्ता ने बताया कि इस माह की 19 तारीख से सभी ग्रामीण इलाकों में मलेरिया निरीक्षण का कार्य प्रारंभ हो गया है। इस दौरान जिलेभर से एक लाख 60 हजार रक्त पट्टियों का संग्रह कर सभी का परीक्षण भी किया जा चुका है। इनमें से 215 पॉजीटिव व 26 प्रकरण फेल्सीफेरियम के दर्ज किए गए हैं। इस लिहाज से मलेरिया के कुल 241 प्रकरण पाए गए थे। सभी पॉजीटिव मरीजों को रेडिकल ट्रीटमेंट दिया जा चुका है और अब वे स्वस्थ हैं। श्री गुप्ता ने बताया कि जिलेभर में मलेरिया से मौत का कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया गया है।
जिले में अब तक पाए गए 241 में से 26 प्रकरण फेल्सीफेरम के बागली, सतवास और खातेगाँव क्षेत्रों में दर्ज किए गए थे। उल्लेखनीय है कि ये तीनों ही क्षेत्र घाट के आसपास और निचले इलाके में बसे हुए हैं। इसलिए अधिकांश प्रकरण यहीं दर्ज होते हैं। श्री गुप्ता ने यह भी बताया कि यूनिट में मलेरिया की आवश्यक दवाइयाँ क्लोरोक्विन, प्रेमाक्विन आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
By- Vivek Patil
स्वास्थ्य विभाग द्वारा बीमारियों को काबू में करने के दावे अब तक तो खोखले ही साबित होते रहे हैं। इसका अंदाजा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि यहाँ की सब यूनिट के लिए स्वीकृत सभी पद दो सालों से खाली पड़े हैं। प्रभारी अधिकारी प्रकाश गुप्ता ने बताया कि यूनिट के लिए सहायक मलेरिया अधिकारी समेत मलेरिया निरीक्षक के 6 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 2009 से सभी रिक्त हैं। वर्तमान में यूनिट को संचालित करने के लिए सुपरवाइजर को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
हालाँकि अन्य क्षेत्रों में तेजी से फैलते मलेरिया संक्रमण को रोकने के जिले में 19 नवंबर से निरीक्षण कार्य प्रारंभ हो गया है, लेकिन मलेरिया यूनिट में पर्याप्त स्टाफ की कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में निरीक्षण का कार्य आशा कार्यकर्ताओं, एमपीडब्ल्यू, एएनएम और मल्टी परपज वर्कर को करना पड़ रहा है। देवास जिला काफी बड़ा है। इसका ग्रामीण हिस्सा दूर-दूर तक फैला हुआ है। ऐसे में स्टाफ की कमी के चलते जिलेभर का निरीक्षण कार्य प्रभावित हो सकता है।
प्रभारी श्री गुप्ता ने बताया कि इस माह की 19 तारीख से सभी ग्रामीण इलाकों में मलेरिया निरीक्षण का कार्य प्रारंभ हो गया है। इस दौरान जिलेभर से एक लाख 60 हजार रक्त पट्टियों का संग्रह कर सभी का परीक्षण भी किया जा चुका है। इनमें से 215 पॉजीटिव व 26 प्रकरण फेल्सीफेरियम के दर्ज किए गए हैं। इस लिहाज से मलेरिया के कुल 241 प्रकरण पाए गए थे। सभी पॉजीटिव मरीजों को रेडिकल ट्रीटमेंट दिया जा चुका है और अब वे स्वस्थ हैं। श्री गुप्ता ने बताया कि जिलेभर में मलेरिया से मौत का कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया गया है।
जिले में अब तक पाए गए 241 में से 26 प्रकरण फेल्सीफेरम के बागली, सतवास और खातेगाँव क्षेत्रों में दर्ज किए गए थे। उल्लेखनीय है कि ये तीनों ही क्षेत्र घाट के आसपास और निचले इलाके में बसे हुए हैं। इसलिए अधिकांश प्रकरण यहीं दर्ज होते हैं। श्री गुप्ता ने यह भी बताया कि यूनिट में मलेरिया की आवश्यक दवाइयाँ क्लोरोक्विन, प्रेमाक्विन आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
By- Vivek Patil